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9.10.24

October 09, 2024

सूर्य सबसे पहले किस देश में उगता है आलंपिक गोल्ड मेडल में कितना सोना होता है- ऐसी अजब गजब जानकारी पुरी हिन्दी में

हमारे सब के मन में यह सवाल जरूर खटकता है की सबसे पहले सुर्य कौनसी country में उगता है वो देश क्या नाम से जाना जाता है तो दोस्तो ऐसी ही अजब गजब जानकारी जो इसे पहले आपको शायद ही पढने को मिली होगी मेरी इस पोस्ट में आपको बताऊंगा की सुर्य सबसे पहले कौनसा देश में उगता है आलंपिक गोल्ड मेडल में कितना सोना होता है। और गैस का गुबारा आकाश में कितना ऊपर तक जाता है आप मेरी पोस्ट को ध्यान से पढियेगा और आपको अच्छी लगती है। तो अपने दोस्तों के साथ शेयर भी जरूर किजियेगा।

आपके काम की पोस्ट जरूर पढें - KYC का क्या मतलब है और यह क्यों जरुरी है

सुर्य सबसे पहले कौनसा देश में उगता है? 

इस सवाल का जवाब समझना आशान नहीं है क्योंकि धरती घूमती रहती है इसलिए यह कहना थोड़ा मुश्किल है कि कौनसा देश सबसे पहले आता है हमने धरती को अक्षांश, देशांतर के जरिए विभाजित किया गया है धरती के गोले पर उतरी ध्रुव से दक्षिण ध्रुव तक जो काल्पनिक देशांतर रेखाएं हैं। उनमें जो देश सुदूर पूर्व में 180 देशांतर पर पङेगे वहां सबसे पहले सुर्य उदय मानना चाहिए साथ ही दुनिया को अलग अलग समय जो में विभाजित किया गया है इस टाईम जोन से तह होता है कि सबसे पहले सूर्योदय किस देश में होता है.  सामान्यत हम मानते हैं कि दुनिया में  जापान का मिनामी तोरीशीमा ध्रुव पुर्व में हे इसलिए वहां सबसे पहले सूर्योदय मान सकते हैं इसका दुसरा तरीका यह है कि डेटलाइन को आधार मानें ग्रीन विच मीन टाइम को यदि हम आधार मानते हैं तो जापान के समय में नौ घंटे जोड़ने होगें यानी जब ग्रीन विच मान टाइम शुन्य होगा यानी रात के बारह बजे होगें तब जापान में सुबह के नौ बजे होगें वास्तव में जीएमटी से ठीक बारह घंटे का फर्क फिजी तुवालू न्यूजीलैंड और किरिबाती के मानक समयों में है जबकी इन सबकी स्थिति में अन्तर है इस लिहाज से दुनिया का सबसे पूर्व में स्थित क्षेत्र किरिबाती का कैरलिन दिप है इसलिए यह हम मान सकते हैं कि कैरलिन का सूर्योदय धरती पर सबसे पहले होता है।

आलंपिक गोल्ड मेडल में सोना कितना होता है? 

सबसे पहले आपको बता दें कि 1896,1900 के आलंपिक में गोल्ड मेडल नहीं दिया गया था उनमें चांदी और तांबे के मेडल विजेता टीम और उपविजेता टीम को दिया गया था 1904 में अमेरिका के मिजूरी में तीन मेडल का चलन शुरू हुवा ओलिंपिक के गोल्ड मेडल का आकार डिजाइन और वजन बदलता रहता है.  लंदन ओलंपिक में काफी बडे़ आकार के मेडल दिए गए जो 85 मिमी व्यास के थे इसलिए मेडल की मोटाई 7 मिमी थी सोने का मेडल भी चांदी में ढाला जाता है और उसके ऊपर लगभग 6 ग्राम सोने की प्लेटिंग की जाती है चांदी का मेडल. 925 शुदता की चांदी का बना हुआ होता है. और कांस्य पदक में तांबे टिन और जस्ते की मिलावट होती है।

गैस का गुब्बारा आसमान में कितना ऊपर जाता है? 

गैस के गुब्बारे में हीलियम गैस भरी जाती है यह गुबारा इसलिए ऊपर जाता है.  क्योंकि हीलियम गैस हवा से हल्की होती है.  चूकि हमारे वायुमंडल में आप जैसे जैसे ऊपर जाएंगे हवा हल्की होती जाएंगी आमतौर पर एक छोटा गुबारा चार पांच सौ मीटर की ऊंचाई तक जाता है.  साथ ही वह हवा के प्रवाह के साथ बहने लगता है धीरे धीरे गुब्बारे में भरी हीलियम निकलती जाती है।  और वह नीचे आने लगता है तो दोस्तो  आज की मेरी इस पोस्ट में आपको अजब गजब की जानकारी अच्छी लगी होगी आप अपनी राय comment box  में जरूर बताना। 

30.3.22

March 30, 2022

Kachua aur khargosh ki kahani ( ghmendi khargosh Chatur kachua )

हैलो प्रिय मित्रों आज आपके सामने ऐसी Kachua aur khargosh ki kahani ( ghmendi khargosh Chatur kachua )story लेकर आया हूं जो शायद मेरे से पहले आपको किसी ने सुनाई होगी या आप पहली दूसरी कक्षाओं में आपने study की होगी या बड़े बुजुर्गों ने सुनाई होगी। दोस्तों मेरी कहानी का शीर्षक है कि आप अपने जीवन में कोई भी लक्ष्य कठिन या ऐसा मत समझो कि मैं वो मुकाम हासिल नहीं कर सकता मैं कमजोर हूं मेरे मैं ताकत नहीं हैं मुझमें दिमाग नहीं हैं मैं कमजोर हूं तो आज अभी से कहानी पड़कर मुझे पूरा विश्वास ही नहीं बल्कि यकीन भी है की आपके मन मे जो डर छिपकर बैठ गया हैं वो आज भाग जायेगा।

दूसरी बात मेरी कहानी में जो दूसरा पहलू बताया गया है वो भी आपकी जिंदगी को आपके लक्ष्य को सही सलामत रखे उसके बारे मे विस्तार से मेने जानकारी दी गई है की चाहे हम शक्तिशाली ताकतवर या हमारा bussniss कितना भी बड़ा क्यों ना हो जाए हमे कभी भी अपने आप पर घमंड नहीं करना चाहिए दोस्तों bahut mehnat se Mene पूरी कहानी आपके लिए बनाई है आप ध्यान से पढ़ें और अपने दिमाग में उतारे हां facebook twitter youtube websites पर आपको ऐसी बहुत कहानी मिल जाएगी लेकिन उसमे और मेरी कहानी में दिन रात का फर्क है। Kachua aur khargosh ki kahani ( ghmendi khargosh Chatur kachua )

पुराने जमाने की बात है एक बहुत बड़ा जंगल था उस जंगल में एक खरगोश और एक कछुआ रहता था और भी बहुत सारे जानवर रहते थे khargosh bahut Chatur aur ghamandi tha vah apne aap bahut hi ghamand Karta tha isiliye vah aur dusre janvaron per hansta tha खरगोश बहुत तेज भागता था इसलिए उसको अपने तेज रफ्तार का बहुत घमंड हो रहा था वो मन ही मन बहुत खुश हुआ करता की इस जंगल में मेरे से मुकाबला कोई नहीं कर सकता है ।

 एक समय की बात है जब खरगोश जंगल में घूम रहा था तो उसकी नजर एक कछुआ पर पड़ी और वो उसके पास जाकर उसको देखने लगा और जोर जोर से हंसने लगा की तुम बहुत धीरे धीरे चलते हो तुम मेरे जैसे तेज रफ्तार से दौड़ नही सकते हो। एक मुझे देखो मे इतना तेज speed se भागता हूं कि इस वन में मेरे से कोई जीत हासिल नहीं कर सकता khargosh की पुरी बातें kachua ताव से सुन रहा था और फिर धीरे से बोला कि देख मेरे भाई तुम अपनी रफ्तार पर इतना भरोसा घमंड मत करो ज्यादा उछलना सही नहीं है। इस पर खरगोश कछुआ का मजाक उड़ाते हुए बोला की ओह मेरे छोटे से भाई तू मुझे क्या सीख दे रहा है इतना ही है तो मुझे मुकाबला कर के देख तुझे भी मालूम पड़ जायेगा कि मैं क्या चीज हूं फिर कछुआ बोला रहने दे भाई तेरा ghamand चकनाचूर हो जायेगा और सारे जंगल के जानवर तेरे पर हंसेंगे मेरा तो कुछ नहीं जाने वाला हैं तेरी पोल खुल जाएंगी इस बात पर khargosh को जोर से हंसी आई और बोला ऐसा हैं तो हो जाए मुकाबला फिर दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा सब के सामने। 

अब दोनों के बीच बात पक्की हो गई की सब के सामने जो भी वो दुर एक बहुत बड़ा पेड़ हैं उसके पहले जो चक्कर लगा कर आयेगा वो ही विजेता कहलाएगा । अब जैसे ही दौड़ चालू हुवा khargosh तो बहुत तेज स्पीड से आगे निकल गया था लेकिन कछुआ बेचारा छोटा जानवर था तो वो धीरे धीरे चलने के कारण खरगोश से काफी पीछे रहे गया। खरगोश अपने पूरे जोश के साथ दौड़ता हुआ जा रहा था तबी पीछे मुड़कर देखा तो कछुआ तो दूर दूर तक कई नजर भी नहीं आ रहा था यह सब देख कर खरगोश ने सोचा क्यूं ना कुछ देर के लिए आराम कर लेते हैं। कछुआ अपने नजदीक आयेगा तो फिर तेज भाग कर उसको पीछे छोड़ दूंगा और और बाजी तो मैं जीत ही लूंगा ऐसे भी आगे जाकर करना ही है मुझे ये सोचते हुए खरगोश पेड़ की ठंडी छाए मैं आराम से सो गया। खरगोश नींद में सपने देखने लग गया और इधर कछुआ अपनी चाल से चलता रहा और शाम होने से पहले ही अपना लक्ष्य हासिल कर के वाफिस आ गया और आराम से सो गया की कब खरगोश आयेगा। 

घमंडी खरगोश की एक दम नींद खुली तो देखा कि कछुआ तो आराम कर रहा है फिर खरगोश ने कछुआ से बोला कि तुमने चक्कर पूरा नहीं लगाया तुमने धोखा किया मेरे साथ। खरगोश की ऐसी बातें सुनकर जंगल के सारे जानवर एक साथ बोले की जीत कछुआ की ही हुई हैं और जोर जोर से सबने एक साथ कछुआ की जय बोली और विजय माला पहेनाकर जोरदार स्वागत किया खरगोश बहुत शर्मिंदा हुवा फिर बोला मैं कभी किसी की मजाक नहीं उड़ाऊंगा।

Kachua aur khargosh ki kahani ( ghmendi khargosh Chatur kachua इस कहानी से सीख लेनी चाहिए कि हमे अपने से कमजोर पर कभी भी हंसना नहीं चाहिए सदा सबको बराबर समझना चाहिए दोस्तों आपको मेरी यह post कैसी लगी मुझे जरूर बताएं और अपने दोस्तों रिश्तेदारों के साथ शेयर जरूर करें

26.2.22

February 26, 2022

मेहनत के आगे जीत_एक चतुर कौवा की लघु कथा

 दोस्तों आज मैं आपको एक चतुर कौवा की लघु कथा बताने जा रहा हूं। कहते हैं ना की जो मेहनत करेगा और जो हार नहीं मानेगा उसकी जीत कोई नहीं रोक सकता वो एक दिन विजय जरूर प्राप्त करेगा इसी टॉपिक पर जो आज की मेरी पोस्ट की स्टोरी है वो इसी पर केंद्रित है की कैसे बहुत ही मुश्किल से मुश्किल काम को अपनी हिम्मत और बहादुरी से अपना मुकाम हासिल किया। इसलिए आप मेरी मेहनत के आगे जीत_एक चतुर कौवा की लघु कथा पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़े 

बहुत ही पुराने जमाने की बात है कि जंगल में एक कौवा रहता था एक बार गर्मियों के समय में उसे बहुत जोर से प्यास लगी लेकिन मई जून का महीना होने के कारण तालाब नहर झरना सब सूख गए थे उनमें पानी बिल्कल  नहीं था दूर दूर तक कई पानी नजर नहीं आ रहा था इसके कारण उसका गला सुखा जा रहा था और वो बहुत दुःखी हो रहा था कि जंगल में पानी नहीं मिला तो आज वो अपनी जान गंवा चुकेगा ।

फिर उसने अपनी हिम्मत नहीं हारी और पानी की तलाश में निकल गया बहुत देर खोजने की बाद उसे जंगल से काफी दूर उसे एक खेत में मटका दिखाई दिया और वो मन ही मन जबरदस्त खुश होता हैं उसे मालूम पड़ गया की उस मटके में पानी जरूर मिल जायेगा और मैं अपनी प्यास बुझा लूंगा यह सोचते हुए वो उस मटका ( मिट्टी का गड़ा) के पास पहुंच गया वहा जाकर  मटके के अंदर देखा तो पता चला कि उसमें पानी बहुत कम था यानी उसकी चोंच पानी तक नहीं पहुंच पा रही थी इसलिए अब वो बहुत दुःखी हो गया और सोचने लगा की आज पानी नहीं मिलेगा। अब करू तो क्या करू।

अब कौवा बहुत परेशान हो गया और इधर उधर देखने लगा फिर उसे मटके से कुछ ही दूरी पर कंकड़ पत्थर दिखाई दिए इनको देख कर कौवा के दिमाग में एक तरकीब सोची और उसने छोटे छोटे कंकड़ पत्थर उस पानी के मटके के अंदर डालना शुरू कर दिया ऐसा वो तब तक करता रहा जबतक पानी में उसकी चोंच पहुंच पाती फिर कंकड़ पत्थर से धीरे धीरे पानी उपर आने लगा और अब कौवा अपनी चोंच से आराम से पानी पिया और अपनी प्यास बुझाई और वापिस अपने जंगल की और चला गया।

दोस्तों इस कहानी से हमे बहुत सीख मिलती हैं की हमको कभी भी किसी भी काम को मुश्किल नही समझना चाहिए हमारे में बहुत ताकत है दिमाग हैं इसलिए हमें मुश्किल से मुश्किल काम से घबराना नहीं चाहिए सोचो अगर वो कौवा हार मान कर चला जाता तो अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठता इसलिए हमें भी अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए पूरी ताकत लगा देना चाहिए ।मेहनत के आगे जीत_एक चतुर कोवा की लघु कथा आप सभी को मेरी पोस्ट कैसी लगी आप मुझे कॉमेंट बॉक्स में जरूर बताना अगर आपको अच्छी लगी तो आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को जरूर फेसबुक व्हाट्स ऐप पर शेयर करना।

28.9.19

September 28, 2019

Success कठिन है नामुमकिन नहीं- रवीन्द्र जडेजा जीवन स्टोरी

Success कठिन है नामुमकिन नहीं- रवीन्द्र जडेजा जीवन story

Indian क्रिकेट टीम के आॅलराउडंर रवीन्द्र जडेजा आज के समय में पुरे world में क्रिकेट जगत में जाना माना नाम है रवीन्द्र जडेजा का यहां तक पहुंचने का सफर बहुत ही संघर्ष और कठिनाईयों से भरा हुआ रहा।

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रवीन्द्र जडेजा का जन्म गुजरात के जामनगर जिले में 6 दिसंबर 1988 को बहुत ही साधारण परिवार में हुआ जडेजा के पिता का नाम अनिरुद्ध सिंह था जो प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसी में काम करते थे रवीन्द्र जडेजा के पिता की ख्वाहिश थी कि रवीन्द्र को आर्मी आॅफिसर बनाना है लेकिन जडेजा की रूचि छोटी उम्र से ही क्रिकेट में थी और वो क्रिकेट में ही अपने आप को तैयार करने लग गए।

जब रवीन्द्र जडेजा की उम्र 17 साल थी तब उनकी माता का निधन हो गया था और उनको बहुत गहरा धक्का लगने के कारण जडेजा ने क्रिकेट से भी दुरी बना ली थी रवीन्द्र जडेजा की एक बहन भी है और जब उन्हें पता चला कि जडेजा ने क्रिकेट से दुरी बना ली है तो उन्होंने जडेजा को बहुत सपोर्ट किया परिवार का आर्थिक बोझ उठाने के लिए वह नर्स बन गई।
अंडर 19 world cricket cup 2006 में रवीन्द्र जडेजा को पहली बार भारतीय क्रिकेट टीम में शामिल किया गया 2006 में जडेजा ने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में डेब्यू किया। और दलीप ट्राफी में वेस्ट जोन से खेले और साथ ही सौराष्ट्र से रणजी ट्रॉफी भी खेलने लग गये।जब भारत ने अंडर 19 world cricket cup विजेता बना तब रवीन्द्र जडेजा भारतीय क्रिकेट टीम के उपकप्तान थे।

रवीन्द्र जडेजा ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 8 फरवरी 2009 को पदार्पण किया तब भारतीय टीम एक सीरीज खेल रही थी और उस डेब्यू मैच में इस हरफनमौला खिलाड़ी ने शानदार 60 रनों की नाबाद पारी खेली थी और उसी साल जडेजा ने 10 फरवरी को टी-20 में भी डेब्यू कर लिया था। 2012 में रवीन्द्र जडेजा ने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में तीन तिहरे शतक लगाकर एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया जो इसे पहले किसी भी भारतीय खिलाड़ी द्वारा प्रथम श्रेणी क्रिकेट मैच में नहीं हुआ था।

इंग्लैंड की टीम टेस्ट मैच खेलने 2012 में जब भारत आई थी तब नागपुर में 13 दिसंबर 2012 को जडेजा ने इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट मैच में डेब्यू किया था जब भारत में आईपीएल की शुरुआत हुई तो अलग अलग टीमों में जडेजा को खरीदने की होड़ मच गई और तब से लेकर अब तक रवीन्द्र जडेजा चेन्नई सुपरकिंग्स, गुजरात लाॅयंस, राजस्थान रॉयल्स जैसी टीमों से अपनी समता और जलवा दिखा चुके हैं।


रवीन्द्र जडेजा घुड़सवारी के बहुत शौकीन हैं जडेजा को अपने कैरियर में बहुत उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा।वो अपने हुनर और मेहनत से अपने आप को साबित करने में कामयाब रहे इसी लिए कहते हैं कि अपने आप को सक्सेस करना कठिन हो सकता है लेकिन नामुमकिन नहीं। मेरी पोस्ट Success कठिन है नामुमकिन नहीं- रवीन्द्र जडेजा जीवन स्टोरी आपको कैसी लगी आप मुझे comment box में अपनी राय मुझे जरूर बताएं और अगर आपको पोस्ट अच्छी लगी हो तो आप अपने दोस्तों के साथ शेयर जरुर करें।

13.2.19

February 13, 2019

Paralysis से मुक्ति मात्र सात दिनों में - जानिये इस मंदिर के बारे में

हैलो दोस्तों आज में आपको बताने वाला हूं एक ऐसे मंदिर के बारे में जिसने विज्ञान को ही मात दी है।  इस मंदिर में सात परिक्रमा देने पर लकवाग्रस्त रोगी पूर्णतया तैयार हो जाता है  यह पुरी घटना मेरी आँखों  के  सामने  घटने के बाद यह पोस्ट मैंने  लिखी है। इसके बारे में और भी विस्तार से आपको जानना है तो आप निचे कोमेंट करके पुछ सकते हो।  जब मरीज डॉक्टर से भी तैयार नहीं होता है। तो वो भी मरीज को एक बार इस मंदिर में जाने को बोलते हैं दोस्तों मेरी इस Paralysis से मुक्ति मात्र सात दिनों  post को ध्यान से पढना और अपने दोस्तों परिवार और रिश्तेदारों के साथ शेयर जरूर करना. पोस्ट को अंत तक जरुर पढें।

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राजस्थान का नाम शायद ही नहीं सुना होगा, आपने तो आज में परिचय करवा देता हूं कि राजस्थान भारत ( India ) देश का एक राज्य है. राजस्थान की सीमा एक तरफ pakistan से भी लगती है हरियाणा पंजाब दिल्ली गुजरात यह भी पङोसी राज्य है. राजस्थान शान्तिप्रिय राज्य है और इसमें 33 जिले है|इन जिलों में एक जिले का नाम है. नागौर और यह राजस्थान के दिल के नाम से प्रसिद्ध भी है. क्योंकि यह राजस्थान के बीचोंबीच पङता है इसके पड़ोसी जिले अजमेर सीकर पाली जोधपुर जयपुर चुरु यह जिले है.

नागौर से 40 km दूर अजमेर रोड पर कुचेरा गांव से आगे बुटाटी गांव है. इसी गांव में यह मंदिर बाबा श्री चतूरदासजी महाराज के नाम से जाना जाता है. और यहां लकवा (पैरालिसिस) के जो मरीज आते हैं वो आते अपनो के सहारे है लेकिन जाते खुद के सहारे, लकवे के मरीजों का यहां 100% इलाज होता है. यहाँ आपको सात दिनों के लिए रूखना जरूरी है मरीज को सुबह - शाम मंदिर में परिक्रमा लगानी रहती है सुबह शाम आरती होती है. उस टाईम मरीज को हवन कुंड की भभूति लगानी चाहिए.

लकवा रोगी के साथ दो परिजन साथ रहे सकते हैं. यहाँ रहना खाना सब नि:शुल्क होता है. आपको पहले दिन से ही सोने के लिये, अलग कमरा बिस्तर खाना बनाने के लिए आटा दाल और सब बर्तन यहां आपको फ्री मिलेंगे आप सात दिन यहां रहेगें तो ही पुरा फायदा मिलेगा क्योंकि सुबह शाम मंदिर में परिक्रमा और हवनकुंड लेने से ही रोगी को फायदा होता है. और आपको कुछ मालिश करने के लिये तेल मंदिर से आपको दिए जायेंगे वो तेल मरीज को डेली दिन में दो या तीन बार मालिश करना रहेगा और बाबा श्री चतुरदासजी महाराज का नाम लेते रहना चाहिए.

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सात दिनों तक परिक्रमा हवन कुंड भभुती लगाने से लकवा ग्रस्त रोगी के धीरे धीरे हाथ और पैर हीलना चालू हो जायेगें लकवा के मरीजों को डॉक्टर भी यहां भेजते हैं. लेकिन आपको मंदिर के नियम पुरी तरह से मानना होगा तो ही फर्क पड़ता है.

यह विडियो बुटाटी धाम का है 


दोस्तों यह बात बिल्कुल सत्य है अगर आपके भी किसी जान पहचान या रिश्तेदार में कोई लकवा ग्रस्त है. तो एक बार जरूर बुटाटीधाम पर लेकर आऐ आपको कुछ भी साथ में लेकर नहीं आना है. मंदिर ट्रस्ट द्वारा सब सुविधा उपलब्ध करवा दी जाती है. अगर आपको फायदा हुवा तो आपकी इच्छा अनुसार भेंट या दान कर सकते हैं.

इस मंदिर मे बिमारी का इलाज ना तो कोई पंडित करता है और ना कोई वैद या हकिम  यहाँ चलती है तो केवल और केवल मंदिर के परिक्रमा और हवन कुंड भभुति लगाने से होता है इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि जब भी किसी को लकवा हो जाए तो वो तीन चार दिन में वहां पहुंच जाता है तो उसका इलाज बहुत जल्दी होता है।

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केसे होता है चमत्कार :>>कहते हैं 500साल पहले यहां एक संत बाबा चतुरदास के नाम से हुवा करता था. उन्होंने रोगों के मुक्त के लिये यज्ञ किया और तपस्या की और बाद में यहां समाध ले ली तब से बाबा श्री चतुरदास जी महाराज के समाधि स्थल के परिक्रमा लगाने से लकवा ग्रस्त रोगी पुरी तरह तैयार हो जाते हैं.
दोस्तों यह पोस्ट मेनें वहां मेरी आंखों के सामने देखने के बाद किया है लकवे (पैरालिसिस ) पुरी तरह से निवारण होता है. अगर किसी को लकवा होने के 4-5 दिनों में पहली वहां चले जाने पर इलाज बहुत जल्दी हो जाता है. राजस्थान से बहार से आने वाले लोगों के लिए भी ट्रेन का बहुत अच्छा साधन है. जोधपुर और जयपुर के बीच मेङता से15 किलोमीटर दूर रेण गांव का स्टेशन पडता है जो बुटाटीधाम से 20 किलोमीटर दूर है.

'' कर भला तो हो भला ''

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12.9.18

September 12, 2018

Happy ganesh chaturthi-2018 : गणेश चतुर्थी कैसे और क्यों मनाया जाता है - Indianfirstnews.com

भारत एक महान देश है और यहां हर त्यौहार बङे ही धूमधाम से मनाया जाता है यहाँ हर साल इतने त्यौहार आते हैं कि आप गिनती भी नहीं कर सकते हैं और सभी त्यौहार कुछ ना कुछ अपनी छाप छोड़ कर जाते हैं दिपावली होली भाई बहन का त्यौहार रक्षाबंधन मकरस्क्रांन्ति ईद और गणेश चतुर्थी नवरात्रा इत्यादि बहुत सारे त्यौहार और भी है जो सब मिल-जुलकर मनाते हैं,
गणेश जी 
दोस्तों आज के दिन गणेश चतुर्थी का त्यौहार मनाया जाता है गणेश चतुर्थी हिन्दूओं के प्रमुख त्योहारों में से एक त्यौहार है और हिन्दू समाज में इस त्यौहार को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है  गणेश चतुर्थी भाद्रपद चतुर्थी से भाद्रपद चतुर्दशी तक मनाया जाता है क्योंकि कहा जाता है कि आज ही के दिन भगवान गणेश जी धरती पर जन्म लिया था तब भगवान शिव और पार्वती ने इनका नाम गणेश रखा था तब से आज के दिन को गणेश चतुर्थी के रुप में मनाया जा रहा है
यह त्यौहार पूरे भारत देश में बङे ही धूमधाम से मनाया जाता है खासतौर से महाराष्ट्र में इस त्यौहार का जज्बा कुछ अलग ही होता है आज दिन भगवान गणेश जी की मुर्ति की स्थापना की जाती है हर भक्त गणेश जी की मुर्ति अपने घर ले जाता है और 9 दिनों तक सुबह शाम आरती और पुजा करके भगवान गणेश जी के भोग चढाया जाता है यह परम्परा हर रोज होती है फिर नोवें दिन भगवान गणेश जी की मुर्ति को नदी या तालाबों में विसर्जन कर दिया जाता है
गणेश चतुर्थी का दिन बहुत ही शुभ मुहूर्त के रुप में माना जाता है और इस दिन कोई भी नयी चीज या समान खरीदने के लिए बहुत अच्छा मुहूर्त होता है गणेश चतुर्थी के दिन बाजारों और दुकानों में बहुत ही सुंदर सजावट की जाती है और लोगों की शुभ मुहूर्त में समान जैसे सोना के आभूषण चांदी के आभूषण गाड़ी वाहन और भी कई तरह के समानों की अच्छी खरीदारी होती है

कहते हैं कि यह सब करने से भगवान गणेश जी बहुत खुश होते हैं और हर भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैंआप और आपके पुरे परिवार को गणेश चतुर्थी के पावन पर्व के शुभ अवसर पर ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं आप सभी पर भगवान गणेश जी क्रिपा सदैव बनी रहे और आप अपने लक्ष्य को हासिल करने में सफल हो |

6.9.18

September 06, 2018

गणित का ज्ञान देकर किसने जीता पुरी दुनिया का दिल, पुरी खबर पढने के लिए Indian first News की पोस्ट पढ़े : '' Mathematician ''

शकुंतला देवी   4 नवम्बर 1929 को बेंगलुरु में जन्मीं मानव कंप्यूटर के नाम से चर्चित शकुंतला देवी ने गणित के जटिल सवालों को बिना किसी मशीनी सहायता के हल करके दुनिया भर में डंका बजा दिया |1977 में उन्होंने टेक्सास में 201 अंकों की संख्या का 23 वां रुट मात्र पचास सेकण्ड में निकाल दिया |शकुंतला देवी ने मौखिक हल कर दिया जबकि उस समय के सबसे तेज कंप्यूटर को यह हल निकालने में 62 सेकण्ड लगे |1980 में उन्होंने 13 अंकों वाली दो संख्याओं का गुणा मात्र 28 सेकंड किया |1995 में उनका नाम गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज किया गया

सीपीरामानुजम >>>  9 जनवरी 1938 को चेन्नई में जन्में रामानुजम ने अल्पायु में ही लोगों के बीच अपनी प्रतिभा की पहचान करवा दी |टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के शिक्षक उनके प्रशंसक बन गए और एक स्वर में उन्हें गणित का अद्वितीय प्रतिभावान छात्र घोषित कर दिया |अलजेब्रिक ज्यामिती और नंबर थ्योरम में रामानुजम का उल्लेखनीय योगदान है |
दत्ताराय  राम चन्द्र कापरेकर >> कापरेकर 1905 में महाराष्ट्र में जन्में | भले ही उनके पास कोई औपचारिक पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री न रही हो लेकिन गणित से जुड़े सवाल हल करने में बङे ही उस्ताद थे वो |अमेरिकी विद्दान मार्टिन ने साइंटिफिक अमरीकन्ज में मैथेमेटिकल गेम्स तैयार करने में उनकी महती भूमिका के लिए उनकी खूब सराहना की |
नासिक में एक स्कूल शिक्षक की नोकरी करते हुए उन्होंने रेकरिंग दशमलव, मैजिक स्कैयर और नवम्बर थ्योरी पर खूब रोचक जानकारियां लिखी |उन्होंने ही कापरेकर कांस्टैन्ट और कापरेकर नंबर की खोज की |